

शराफ़त अली कसाना के पिता नूर दीन की 2002 में मृत्यु हो गई. उस समय दीन घर के मुखिया थे. गर्मियों में वह अपने परिवार व अन्य वन गुज्जरों को उत्तराखंड के राजाजी जंगल से अपने वार्षिक प्रवास के लिए ऊंचे पहाड़ के जंगलों में ले गए. उनकी मृत्यु इसी प्रवास के दौरान हुई. कसाना को आज भी इस बात का दुःख है कि उनके पिता को मृत्यु के एक दिन बाद तक भी नहीं दफ़नाया जा सका था क्योंकि उन्हें कोई उपयुक्त क़ब्रिस्तान व कफ़न नहीं मिल सका और उस समय उनका नमाज़े जनाज़ा कराने वाला कोई इमाम भी नहीं मिला. कसाना याद करते हुए कहते हैं कि “उस समय हमने अंतिम बार ऊंचे पहाड़ों की ओर प्रवास किया था.” बाद के दशकों में वन गुज्जरों की मुक्त आवाजाही पर प्रतिबन्ध बढ़ता गया और गुज्जर समुदाय को अपने मवेशियों के लाभ के लिए प्रवासी पैटर्न को अनुकूलित करने को…
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